Mon. Dec 23rd, 2024

चलो चले गांव की ओर… चौथी किश्त… अबे बस्स कर भैजी पाणी नहीं मिलाऊंगा क्या?

नीरज नैथानी
रुड़की, उत्तराखंड


चलो चले गांव की ओर…गतांक से आगे… चौथी किश्त
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शाम को आरती के बाद जब चरनामृत व प्रसाद बांटा जा रहा था तो दिल्ली से आए डायरेक्टर बोडा ने चुटकी लेते हुए नत्था के बाबा नरू काका से कहा भुळा दूसरा प्रसाद लेना है तो बोल, बढ़िया ब्राण्ड की अटैची में दिल्ली से डाल लाया हूं। भैजी नेकी और पूछ पूछ हम तो बचपन से ही हर प्रकार का प्रसाद ले लेते रहे हैं आपको पता ही है, यह कहते हुए नरू काका की आंखों में चमक उभर आयी। तो थोड़ी देर में कमरे में सुट करके आ जाना और सुन वो पल्ले खोले के घुत्ता को बोल देना और उस ऐबी दिन्ना को भी, बौत दिनों बाद भै बंदो के साथ अपणी खौ-खैरी लगाएंगे, छुंई बत्ते होंगी।

फिर शाम ढलते ही डायरेक्टर बोडा के पुश्तैनी मकान के लचर कमरे में महफिल जम गयी। दो पैग हलक में उतरते ही देरादूनी भाई लरजदार टोन में बोला अबे सुन बे नरु काका, नेपालियों को भगा क्यों नहीं देते यहां से, हमारे गांव के लड़कों को कच्ची की लत लगा देंगे। सुना है टुर्रा व नत्था रोजाना वहां जाकर चांवल गुड़ की पैली खेप गटकते हैं। भैजी भगा देते हम इन्हें यहां से पर क्या करें टैम बेटैम पे येई हमारे काम आते हैं, नत्था के बाबा ने बताया।
ये नेपाली ही हैं जो नीचे सड़क से हमारा गैस सिलेंडर लाकर गांव तक पौंचा देते हैं, इन नेपालियों ने गधेरे के आस-पास बंजर पड़े खेतों को भी आबाद कर दिया है।अब भैजी आप देखी रे हो सब तो गांव से भैर चले गए, यां कौन करेगा खेती पुंगड़ी।

भैजी जब खोल ही दी है तो एक-एक और चला दे अपनी व्यथा बीच में रोक कर नरू ने खाली गिलास डायरेक्टर बोडा के आगे बढ़ाते हुए अनुनय की। हां, हां एक नहीं दो पैग ले आठ दिन का पूरा कोटा लाया हूं तुम सबके लिए, बस्स टुर्रा की तरह हंगामा मत करना कहते हुए डायरेक्टर बोडा ने अपनत्वपूर्ण भाव से नरू का गिलास ऊपर तक भर दिया। अबे बस्स कर भैजी पाणी नहीं मिलाऊंगा क्या? फिर आधे को नरू ने एक ही सांस में उतार दिया अब मिलेगा इसमें पानी कहते हुए उसने जग को उठाया अरे, पाणी तो खत्म हो गया। मैं लाता हूं कहते हुए दिन्ना‌ लड़खड़ाते कदमों को नियंत्रित करते हुए बाहर गया। अबे संभल के अंधेरे में चोट मत खा जाना घुत्ता ने भी अपना आधा गिलास मेज पर रखते हुए कहा।

भैजी अब गांव में पैले जैसी बात नहीं रै गयी नरू पर नशा असर दिखाने लगा था। फिर वो पिनक में हालात बयां करने लगा, यहां खेत में हल चलाने को ना हल्या मिल रे ना बैल। ऐसे मे ये नेपाली टमाटर, आलू, मूली, पालक, राई, भिण्डी, लौकी, कद्दू, खीरा लगाकर कम से कम खेतों की हरियाली तो बनाए हुए हैं। फिर हमें दो टैम की ताजी सब्जी भी मिल जाती है और तो और इनी के तीन चार बच्चे ही स्कूल में पढ़ रे हैं जिनसे स्कूल चल रा है नई तो कब का बंद हो जाता। और सबसे बड़ी बात मरजात होने पे चार आदमी नई मिलते कंधा देने को इस गांव में, तब येई टुर्रा, नत्था, नेपाली हमारा सहारा बनते हैं, दुधारी गौड़ी की लात भी सहनी पड़ती है भैजी, यैई सोचकर हम इनकी बिगड़ैली भी बरदाश्त कर रे हैं। इसके अलावा और कोई चारा भी तो नहीं है हमारे पास उसने एक सांस में व्यथा सुनायी। चल मैं दिलाता हूं नत्था को हरियाणा से चार जर्सी गाय, उससे कहो गाय पाले, गांव में डेरी खोले डायरेक्टर बोडा ने आश्वासन दिया।

कोटद्वारी ने मदद को प्रस्ताव रखा अच्छा मैं टुर्रा को बकरी भेड़ दिला देता हूं, उनका बिजनेस करे इस बहाने उलझा रहेगा। मैं हार्टीकल्चर व फौरेस्ट डिपार्टमेंट में भी बात करूंगा, वहां से पौध मिल जाएगी, बोडा ने प्रस्ताव रखा। फलदार वृक्ष लगाओ। फल बहुत महंगे बिक रहे हैं बाजार में, फलों का व्यापार करो, भाई लेकिन मेनत करनी पड़ेगी। खाली दारू पीकर गाली देने व फालतू बकवास करने से कुछ हासिल नहीं होगा। हम हर प्रकार से मदद करने को तैयार हैं हम अपने गांव में खुशहाली देखना चाहते हैं, अब तक बोडा की आंखे भी नशे में लाल हो चुकी थीं।

हमारे गांव का नौजवान निठल्ला ना घूमें, शराब नशा करके बरबाद ना हो, मेनत करे, काम करे अपने बीबी बच्चे देखे, खुश रहे, हम साथ खड़े हैं जो भी व जितनी भी मदद चैय्ये होगी हम हमेशा हर दम तैयार रहेंगे, एक और घूंट‌ भरते हुए बोडा ने हौंसला बढ़ाया। भैजी आप लोगों के बल बूते हमारे भी कालर खड़े हो जाते‌ हैं दिन्ना अब ज्यादा बहकने लगा था। साल्ला आस-पास के गांव में इत्ते आफीसर और कहीं क्या ही होंगे। अपणे गांव में डारेक्टर, फारेक्टर, इनस्पेक्टर एक से बढ़ कर एक हैं उसकी आवाज ऊंची होती जा रही थी।

एइ दिन्ना थम जा, आवाज नीची कर बोडा ने प्यार से धमकाया। भैजी हम आप लोगों के दम पे चौड़े होते हैं, जब तक हमारी आपकी भयात बनी‌ है कोई माई का लाल—–। दिन्ना चोप्प हो ज्जा। अब जुबान खोली तो लगाऊंगा एक, नरू जोर से दहाड़ा। डारेक्टर बोडा की इज्जत का सवाल है दो पैग में ही आसमान चढ़ जाता है साला। अच्छा अब कल शाम बैठेंगे बोडा ने हालात को कंट्रोल करने के लिहाज से कहा। नई मुझे तो जरा भी नशा नहीं हुआ मैं एक पैग और मारूंगा घुत्ता ने कुर्सी पर पसरते हुए कहा। चल घुत्ता बौत हो गया, दिन्ना उसे उठाने की कोशिश में लड़खड़ाकर गिर गया। इस हलचल में पुरानी मेज संतुलन न बना‌ पायी। गिलास, जग, सलाद की प्लेट सब‌ बिखर गए।

अब्बे यार, ये सीन करोगे तो तुम्हारी भाभी तुम्हारे साथ मेरी भी क्लास ले लेगी बोडा घपरोल से खिन्न होकर बोला। मैं ठीक करता हूं कहते हुए नरू ने कमान संभाल ली, फिर उसने बिखरी चीजों को समेट कर मेज पर रखना शुरु कर दिया। हो गया, हो गया—- बाकी रैने दे, बच्चे उठा देंगे कहते हुए बोडा ने सभी को किसी तरह अलविदा किया।

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