Mon. Dec 23rd, 2024

चलो चले गांव की ओर… दूसरी किश्त.. अपनी जड़, जमीन से बढ़ गया लगाव

नीरज नैथानी
रुड़की, उत्तराखंड
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चलो चले गांव की ओर…दूसरी किश्त… गतांक से आगे

कई सालों से देश के विभिन्न राज्यों के अनेक शहरों में काम कर रहे हमारे गांव के लोग जब से पूजा में शामिल होने के लिए गांव आने लगे हैं उनका अपनी जड़ जमीन से लगाव बढ़ गया है। एक-दूसरे के बारे में पूछताछ हो रही है। गांव आने पर वे जिज्ञासा प्रकट करते हैं, फलाने का बड़ा वाला क्या कर रहा है? उसने बेटी ब्याह‌ दी? उसका नौकरी पर लगा?

कुनबे के चाचा जी अपने भाई से गुहार लगा रहे हैं, आपकी शहर में इतनी जान पहचान है, इस छोटे को कहीं चिपकाओ, कोई कह रहा‌ है कि दोनों बिटिया सयानी हो गयीं हैं ढंग का रिश्ता बताओ? किसी की खुशामद है कि ये बिगड़ गया है सारे गांव में लफण्डरों की तरह भटकता रहता है, इसे अपने साथ ले जाओ। कोई आश्वस्त कर रहा है, अच्छा तू तैयार हो जा हमारे साथ चलेगा इस समय। कोई सुझाव दे रहा है इसके लिए गांव में ही दुकान खोल देते हैं,चार पैसे कमाएगा बूढी दादी की देखभाल भी करेगा।

एक-दूसरे से मदद की गुजारिश हो रही है, मिलकर दुख दर्द बांटे जा रहे हैं, पीड़ा वेदनाएं साझा की जा रही‌ हैं, तमाम सारी जानकारियां हासिल की जा रही हैं। कोई कह रहा‌ है अर्रे, इत्ते साल बाद आया है तू। दादी बगल के टुन्ना से लिपट कर रो रही है। जरा सा था तू जब गांव से गया था कहकर दादा जी ने सच्चू दा को सीने से चिपटा लिया। हमारे साथ तू भी बूढ़ा हो गया रे भानू दादा ने बल्लू चाचा को गले लगाकर कहा। अबे आ जाया करो गांव कभी-कभार, क्या भरोसा आज हैं कल रहें न रहें, उमर पूरी हो चुकी है हमारी, कहते हुए काका की आंखों में आंसू भर आए।

सच में भावनाओं का सैलाब उमड़ा नजर आता है इस मौके पर।
दादी प्रणाम,चिरंजीव बेट्टा, सेवा लगांदू, सदा सुहागिन रे, सौभाग्यवती रै, राजि खुशि रे, अंकल नमस्ते, अबे अंकल के बच्चे काका हूं तेरा झुक कर सेवा लगा, चल प्रणाम कर ये ताई जी हैं, ये फूफ्फू हैं। इस प्रकार के अनेक भावपूर्ण संवाद सुनने को मिलते हैं, पूजा के समय जब सारा गांव इकठ्ठा होता है।अत्यंत भावुक दृश्य होता है इस मौके पर। और कौन-कौन आया है रे, वो आ गया कलकत्ते वाला, सालों बीत गए पीठ फेर कर चला गया, सुध ही नहीं लेता।

मेरा बिरजू भी कल सुबह तक पहुंच जाएगा निम्मा दादी ने बताया, पूरे चार साल बाद आ रहा है। राकू को तो इस साल छुट्टी नहीं मिली उसके साहब ने साफ मना कर दिया चाची ने निराश स्वर में बताया। तू कब तक रहेगा? अरे आया है तो दो-चार दिन और ठहर कर जाना। नहीं काका छुट्टी नहीं हैं परसों ज्वाइन करना है। अब बच्चों के स्कूल भी खुलने वाले हैं।
ऐसे तमाम सारे वार्तालाप सुनने को मिलते इस मौके पर।

क्रमश:जारी……

 

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