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हरीश कंडवाल… उत्तराखंड सरकार… ऐसे में कैसे पढ़ेंगी बेटियां.. कैसे बढ़ेंगी बेटियां?

हरीश कंडवाल
पौड़ी गढ़वाल, उत्तराखंड
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ऋषिकेश से सटा जनपद पौड़ी गढ़वाल का यमकेश्वर ब्लॉक आज भी मूलभूत सुविधाओं के लिए तरस रहा है। ब्लॉक में कई गांवों में आज भी बेटियां जान हथेली पर रखकर आखर बांचने की जिद ठाने हुए हैं। लड़कियां सुबह सवेरे अंधेरे में टॉर्च लेकर स्कूल के लिए निकलती हैं। बरसात में तेज बहाव वाली नदी पार कर पांच से सात किलोमीटर खड़ी चढ़ाई और उतराई नापकर स्कूल पहुंचती हैं। इनके लिए अपना राज्य बनने के बाद भी सुविधाएं नहीं मिल पाई… केंद्र सरकार बेटी बचाओ बेटी बढ़ाओ का नारा दे रही है… ऐसे में उत्तराखंड सरकार बताए कि ऐसे पढ़ेगी उत्तराखंड की बेटियां… ऐसे बढ़ेंगी उत्तराखंड की बेटियां???

यमकेश्वर क्षेत्र की बानगी तो देखिये जहॉ जनता ने लोकतंत्र में प्रतिनिधि चुनकर बेटियों को आगे बढाया है। लेकिन, वहीं उतना ही कड़वा घूट यह है कि वहॉ की बेटियों को जान जोखिम में डालकर अपने मूलभूत अधिकार शिक्षा पाने के लिए हर रोज जहदोजहाद करना पड़ता है। यमकेश्वर की जनता ने उत्तराखण्ड बनने के बाद हमेशा यहॉ महिला को प्रतिनिधित्व दिया, यह लोकतंत्र की बड़ी कामयाबी मानी जाती है। हमारे यमकेश्वर में वार्ड मेंम्बर से लेकर प्रधान, क्षेत्र पंचायत, जिला पंचायत, ब्लॉक प्रमुख और विधायक भी बेटी ही है। लेकिन, इसके बाद भी यहॉ की बेटियां अपने लिए विकास की बाट जो रही हैं, आज भी वह शिक्षा पाने के लिए कई मीलों दूर पैदल जान जोखिम में डालकर जाने को मजबूर हैं।

तस्वीर सब कुछ बयॉ कर रही है, तस्वीर यमकेश्वर क्षेत्र के तालघाटी स्थित रणचूला ग्राम सभा के कोटा गॉव के यशवंत सिंह चौहान की बेटी ज्योति की है, जो जनता इण्टर कॉलेज किमसार में कक्षा 12वीं की छात्रा है। अभी स्कूल खुले हैं, ज्योति और प्रीति को अपने घर से नीचे एक किलोमीटर उतरना है फिर ताल नदी पार करके लगभग 07 किलोमीटर की खडी चढाई चढकर किमसार जाना होता है। जहॉ आने-जाने मे पूरा दिन लग जाता है, उसके बाद बेटियों को अपने मॉ के साथ घर के काम में भी हाथ बॅटाना होता है, तब जाकर वह शाम को कुछ घंटे ही पढ पाती हैं, क्योंकि अगले दिन फिर वही उतराई, जान जोखिम में डालकर ताल नदी पार करके फिर 07 किलोमीटर पैदल चढाई चढकर स्कूल जाना और ऐसे ही शाम को वापिस आना है। आप इस चित्र में देख रहे हैं कि ज्योति अपने साथ टॉर्च लेकर जा रही है, यह टॉर्च इसलिए कि वह घर से जल्दी सुबह अंधेरे पर ही निकल जाती है। रास्ते मेंं जंगली जानवरों का डर अलग शाम को आते-आते अंधेरा हो जाता है।

इन दो बेटियों की तरह ही तालघाटी के अन्य गॉव की बेटियॉ भी जान जोखिम में डालकर झाड़ियों के रास्ते अपनी स्कूली शिक्षा पूरे करने के लिए जाने को मजबूर हैं। तालघाटी ही नही बल्कि त्याड़ो घाटी की बेटियॉ भी जान जोखिम में डालकर 5-7 किलोमीटर दूर दिउली राजकीय इण्टर कॉलेज में पढने जाती हैं। शायद इन बेटियों का दर्द उन लोगों को क्या होगा जो गाड़ियों में बैठकर आते हैं और क्षेत्र भ्रमण करने के बाद सोशल मीडिया में विकास होने का दावा करते हैं। वाकई में सही कहा गया है कि वह क्या जाने पीड़ पराई जिसके पॉव न गये हों बिवाई।

तालघाटी के लोगों के लिए शायद उत्तराखण्ड राज्य से ज्यादा यूपी अच्छा था। उस समय यूपी सरकार ने यहॉ तालघाटी को दो प्राईमरी स्कूल और एक जूनियर हाईस्कूल दिया। उत्तराखण्ड बनने के बाद तालघाटी का विकास नहीं होने से यहॉ पलायन होता गया और स्थिति यह आ गयी कि उत्तराखण्ड सरकार बनने के बाद यहॉ विकास की आस खो चुके लोग अपने नौनिहालों को लेकर शहर की ओर उन्मुख हो गये, नतीजन 1951 की प्राईमरी स्कूल गंगाभोगपुर और 1989 का बना राजकीय प्राथमिक विद्यालय दिवोगी छात्र विहीन होकर बंद हो गया। जहॉ एक इण्टर कॉलेज होना चाहिए था वहॉ हाईस्कूल तक नसीब नहीं है।

यहॉ की सरकारों ने मनरेगा के अलावा कोई भी निधि यहॉ के लिए नहीं दी। धारकोट जुलेड़ी मोटरमार्ग अधर में लटका है। कांडाखाल खैराणा मोटर मार्ग का आज तक डामरीकरण नहीं हो पाया। यहॉ स्वास्थ्य के नाम पर ऋषिकेश एम्स से पहले कोई सामुदायिक और प्राथमिक स्वास्थ्य केन्द्र नहीं है। सड़क के नाम पर तालघाटी की एक कच्ची सड़क जो बरसात मेंं चार महीने बंद रहती है वह भी वन विभाग के द्वारा अक्टूबर में जनता के भारी दबाव के कारण खुल पाती है। वहीं, सरकारी राशन के लिए तालघाटी के लोगों को कांड़ाखाल या किमसार जाना पड़ता है। आज भी यहॉ के लोग मूलभूत सुविधाओं के लिए तरस रहे हैं। पटवारी के काम से लेकर पंचायत मंत्री से काम करवाने के लिए डांडामण्डल या गंगाभोगपुर और तहसील ब्लॉक जाने के लिए यमकेश्वर पैदल या फिर ऋषिकेश घूमकर लक्ष्मणझूला- काण्डी मोटर मार्ग के रास्ते जाना होता है। यह ऐसी बिडम्बना शायद हर किसी को काल्पनिक लगती हो लेकिन तालघाटी के लोगों के लिए यह यथार्थ है।

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