Mon. Dec 23rd, 2024

जो बातें अहितकर हों उन्हें न अपने मुख में रखें न भीतर जाने दें… पचा जाएँ शिवजी की तरह

भगवद चिन्तन… श्रावण मास शिवतत्व

भगवान् शिव का एक नाम नीलकंठ भी है। समुद्र मंथन के समय निकले विष को लोक कल्याणार्थ भगवान शंकर पान कर गए। विष को न उन्होंने अपने भीतर जाने दिया और न ही मुख में रखा, कंठ में रख लिया।

जीवन है तो पग-पग पर बुराइयों का सामना भी करना पड़ता है। जीवन को आनन्दपूर्ण बनाने के लिए आवश्यक है कि जो बातें हमारे लिए अहितकर हों हम उन्हें न अपने मुख में रखें और न अपने भीतर जाने दें। शिवजी की तरह पचा जाएँ। विषमता रुपी विष अगर आपके भीतर प्रवेश कर गया तो यह आपके जीवन की सारी खुशियों को जलाकर भस्म कर देगा। इसलिए इसे कंठ तक ही रहने देना, चित (मन) तक मत ले जाना।

कल का दिन किसने देखा है,
आज अभी की बात करो।
ओछी सोचों को त्यागो मन से,
सत्य को आत्मसात करो।

हिम्मत कभी न हारो मन की,
स्वयं पर अटूट विश्वास रखो।
मंजिल खुद पहुंचेगी तुम तक,
मन में सोच कुछ खास रखो।

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *