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सीएम योगी से पहले यूपी में जब वीपी सिंह के सीएम रहते हुए थे ताबड़तोड़ एनकाउंटर, बदले में भाई की भी हुई थी हत्या

News by- ध्यानी टाइम्स रवि ध्यानी

त्तर प्रदेश पुलिस के सूत्रों से मिली जानकारी के अनुसार, योगी आदित्यनाथ की सरकार पिछले छह वर्षों में 10,000 से अधिक एनकाउंटर कर चुकी है और 5,967 कथित अपराधियों को गिरफ्तार कर चुकी है।

यह आंकड़ा इस साल 16 मार्च तक का है।

योगी आदित्यनाथ से कई साल पहले कांग्रेस नेता विश्वनाथ प्रताप (वीपी) सिंह उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री थे। उनका कार्यकाल मात्र दो साल 39 दिन का रहा। उनके शासनकाल में हुए एनकाउंटर के रिकार्ड और वर्तमान सरकार के रिकॉर्ड में असाधारण समानताएं हैं।

वीपी सिंह प्रयागराज के ठाकुर थे। वह उत्तर प्रदेश के उन दो मुख्यमंत्रियों में से एक थे, जो भारत के प्रधानमंत्री भी बने। वीपी सिंह के अलावा वह दूसरे मुख्यमंत्री चरण सिंह थे।

जब UP की ‘समस्या’ मिटाने निकले वीपी सिंह

ऐसा कहा जाता है कि 9 जून, 1980 को शपथ लेने के लिए लखनऊ जाते समय वीपी सिंह ने अमेठी के संजय सिंह (तब कांग्रेस नेता, अब बीजेपी नेता) से यूपी के लोगों की सबसे बड़ी समस्या पर उनकी राय मांगी। संजय सिंह ने बताया कि यूपी की सबसे बड़ी समस्या “डकैती” है। जबकि डकैती वास्तव में मध्य प्रदेश में एक समस्या थी।

शपथ लेने के कुछ सप्ताह बाद, वीपी सिंह ने डकैतों के खिलाफ एक अभियान शुरू किया। लगभग हर दूसरे दिन पुलिस मुठभेड़ या डकैती अखबारों की सुर्खियां बन रही थीं।

फूलन देवी और वीपी सिंह

14 फरवरी, 1981 का बेहमई नरसंहार हुआ। इस दिन कानपुर के पास एक गांव बेहमई में ‘बैंडिट क्वीन’ फूलन देवी के गिरोह ने हमला किया और 20 ठाकुरों को मार डाला। यह एक ऐसी घटना थी जिसने वीपी सिंह की छवि को धूमिल किया क्योंकि यह ठीक उस वक्त हुआ, जब उनकी सरकार डकैतों के खिलाफ अभियान चला रही थी। इस घटना के बाद एनकाउंटर की संख्या बढ़ गई। ऐसी अफवाहें भी उड़ीं कि फूलन देवी को मार दिया गया या गिरफ्तार कर लिया गया।

विपक्षी दल के नेताओं ने वीपी सिंह पर दबाव बनाया कि वह इस मामले पर बयान जारी करें। वीपी सिंह ने जवाब दिया, “हम केवल बयान जारी नहीं करते हैं; हम परिणाम दिखाते हैं। राज्य पुलिस की बहादुरी के बावजूद फूलन देवी को गिरफ्तार नहीं किया जा सका। आखिरकार फरवरी 1983 में फूलन देवी ने मध्य प्रदेश में यह कहते हुए आत्मसमर्पण कर दिया कि उन्हें यूपी पुलिस पर भरोसा नहीं है।

वीपी सिंह पर लगा जातिवाद का आरोप

जनार्दन ठाकुर ने अपनी किताब ‘VP Singh: The Quest for Power’ में वीपी सिंह को उनके कार्यकाल के दौरान हुए एनकाउंटर के संदर्भ में उद्धृत किया है, “मेरे हाथ खून से लथपथ हैं, पर खूनियों के खून से लथपथ हैं।”

राज्य में वीपी सिंह के इस्तीफे की मांग तेज हुई। उन दिनों मुख्य विपक्षी पार्टी लोकदल के विधायक मोहन सिंह ने कहा, “एक जाति के अधिकारियों को तैनात करके राज्य प्रशासन को जाति के आधार पर विभाजित करने का प्रयास किया जा रहा है।” उनका इशारा सीएम की ठाकुर जाति की ओर था। वीपी सिंह ने जवाब दिया, “इंसान के खून की कोई जाति नहीं होती है।”

स्ट्रेचर पर विधानसभा पहुंचा विधायक

लोकदल ने ‘फेक एनकाउंटर्स’ और वीपी सिंह की नीतियों के खिलाफ ‘जेल भरो’ आंदोलन चलाया। लोकदल के कई नेताओं और कार्यकर्ताओं को पुलिस ने पीटा, उनमें से एक राधेश्याम पटेल (तत्कालीन सोरांव विधायक) स्ट्रेचर पर विधानसभा पहुंचे। ध्यान देने वाली बात है कि यह वही सीट है, जहां से वीपी सिंह पर पहली बार विधायक चुने गए थे।

मुलायम सिंह यादव ने लगाए गंभीर आरोप

अपनी किताब में जनार्दन ठाकुर ने तत्कालीन लोकदल नेता मुलायम सिंह यादव को उद्धृत किया है। उन्होंने कहा था, “सौ साल में भी इतने लोग एनकाउंटर में नहीं मारे गए जितने पिछले डेढ़ साल में मारे गए हैं।” मुलायम सिंह यादव ने राज्यपाल को 418 लोगों की सूची सौंपी जो कथित तौर पर ‘फेक एनकाउंटर्स’ में मारे गए थे। हालांकि इसके बावजूद राज्य सरकार के डकैती विरोधी अभियान पर कोई ब्रेक नहीं लगा।

जब वीपी सिंह ने की डकैत के परिवार की मदद

राम बहादुर राय द्वार लिखी वीपी सिंह की जीवनी ‘मंज़िल से ज़्यादा सफर में’ में वीपी सिंह ने उनकी सरकार द्वारा चलाए गए डकैत विरोधी अभियान पर बात की है।

किताब में वीपी सिंह ने उन तीन बड़े गिरोहों के बारे में बात किया है जो उन दिनों यूपी में सक्रिय थे। तीनों गिरोह अलग-अलग जाति के लोग कंट्रोल करते थे। एक गिरोह का सरगना ठाकुर, दूसरे का यादव और तीसरे का मल्लाह (नाविक) जाति का था।

सिंह एक डकैत छविराम यादव की एनकाउंटर में हुए मौत का वर्णन करते हैं। छविराम यादव के गिरोह में लगभग 200 सदस्य थे। 3 मार्च, 1982 को जब छविराम एनकाउंटर में मारा गया, तो सिंह ने घटनास्थल का दौरा किया। किताब में वीपी सिंह उद्धृत किया गया है, जिसमें वह बताते हैं, “मैंने देखा कि पुलिसकर्मियों ने उनके शरीर को एक खंभे से बांध दिया था। मैंने उनसे कहा कि हमें शरीर का अपमान करने का अधिकार नहीं है। मैंने उनके घर का दौरा किया और उनके परिवार के सदस्यों की भी मदद की।”

डकैतों का शिकार हुए वीपी सिंह के भाई

जिन डकैतों के खिलाफ वीपी सिंह अभियान छेड़ रखा थे, वे अचानक उनके परिवार के दरवाजे पर जा धमके। 20 मार्च, 1982 को वीपी सिंह के भाई जस्टिस चंद्रशेखर प्रसाद सिंह और उनके 14 साल के बेटे की डकैतों ने हत्या कर दी। वीपी सिंह के भाई इलाहाबाद उच्च न्यायालय में सिटिंग जज थे। घटना के तीन सप्ताह के भीतर, मामले का एक आरोपी जगतपाल पासी, बांदा में पुलिस के साथ एनकाउंटर में मारा गया। यह मौत और बदला लेने वाली हत्याओं का एक दुष्चक्र था।

वीपी सिंह का इस्तीफा, लेकिन क्यों?

27-28 जून, 1982 की रात डकैतों के गिरोह ने कानपुर में 10 यादवों को गोलियों से भून डाला; मैनपुरी में कथित डकैतों ने अनुसूचित जाति के सदस्यों की हत्या कर दी। ठीक उसी दिन वीपी सिंह ने अपना इस्तीफा राज्यपाल को यह कहते हुए भेजा कि “लोग परिणाम चाहते हैं न कि बहाना और वे अनिश्चित काल तक परिणामों की प्रतीक्षा नहीं कर सकते। लोग मेरी नाकामी की कीमत क्यों चुकाएं?”

28 जून, 1982 को सिंह ने मुख्यमंत्री पद से इस्तीफा दे दिया और केंद्र में लौट गए।

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