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UTTRAKHAND NEWSBig breaking:-नहीं रुक रही हरीश रावत और किशोर उपाध्याय के बीच की रार , अब किशोर ने साधा निशाना

News by – ध्यानी टाइम्स रवि ध्यानी

प्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री हरीश रावत और कभी उनके खासम खास कहे जाने वाले किशोर उपाध्याय के बीच तनातनी का दौर अभी भी जारी है दोनों एक दूसरे के खिलाफ फेसबुक पर खुलकर बयान बाजी कर रहे हैं कि ठीक वैसी ही स्थिति है जो 2017 के चुनाव से पहले की स्थिति थी किशोर उपाध्याय हरीश रावत को चिट्ठी लिखते थे तो हरीश रावत भी पलटवार में चिट्ठी लिखने में देर नहीं करते थे ऐसे में हरीश रावत ने पिछले दिनों फेसबुक पेज पर किशोर उपाध्याय के सहसपुर से टिकट मांगने की बात पर जवाब दिया तो अब किशोर उपाध्याय ने सवाल खड़े किए हैं फेसबुक पर लिखते हुए किशोर उपाध्याय ने कहा कि

अपने बड़े भाई श्री हरीश चन्द्र सिंह रावत जी सम्भवतः झिझक से या सम्बन्धों की मर्यादा का पालन करते हुये नाम लेने में संकोच कर गये और मैं उनका आभारी हूँ, “अनन्य सहयोगी” जैसे सम्बोधन के लिये।

उनकी दो बातों “कद्दू छुरी में गिरे या छुरी कद्दू में गिरे” और “देखते हैं कहाँ तक संयम साथ देता है” ने मेरे दिल और दिमाग में दहशत तो नहीं, लेकिन कौतूहल सी गुदगुद्दी पैदा कर दी है। आप लोग इन दोनों बातों का मर्म समझिये। अब वे धमकी देने पर भी आ गये हैं। “कद्दू” पर तो वे 17 बार छुरी मार चुके हैं।

मैं मुख्यत: टिहरी विधानसभा पर आता हूँ और जितनी विधान सभाओं का उन्होंने जिक्र किया है, उन पर बाद में आऊँगा। मैं टिहरी की जनता का आभारी हूँ जिन्होंने दो बार मुझे विधान सभा पहुँचाया। नासमझ उडयारी पहाड़ी होने के कारण मैं अवसरों का कभी लाभ नहीं उठा पाया, नहीं तो पुण्यात्मा राजीव जी ने मुझे 1985 में गौरीगंज से चुनाव लड़ने के लिये कहा था।

2012 के विधानसभा चुनाव में एक नहीं अनेक षड्यन्त्र कर बेईमानी से या यों कहिये अपनी नासमझी से मैं चुनाव हार गया, कैसे..? उस पर भी कभी बाद में। चुनाव हारने के बाद लोग बिस्तर पकड़ लेते हैं लेकिन षड्यन्त्र से 377 वोटों से चुनाव हारने के बाद भी मैं कांग्रेस की सरकार बनाने के अभियान में जुट गया। बसपा के विधायकों से सम्पर्क किया।एक निर्दलीय विधायक का समर्थन कांग्रेस के लिये जुटाया।

सरकार बनने के बाद सबसे अधिक नुकसान मुझे उठाना पड़ा। मैं अपने विधानसभा में जब-जब सक्रिय होता, तब तक दिल्ली से संदेश आता कि कांग्रेस की सरकार निर्दलियों पर टिकी है सरकार गिर जायेगी, इसलिये आप टिहरी में Interfer न करिये। खुद की बनायी सरकार को गिराना क्या उचित होता..?

कांग्रेस की सरकार होने पर भी सबसे उपेक्षित टिहरी विधान सभा का कांग्रेस वर्कर रहा। मेरी हृदय से कामना थी कि श्री हरीश चन्द्र सिंह रावत जी को उत्तराखंड का मुखिया होने का एक अवसर अवश्य मिलना चाहिये और उसके लिये मुझसे जो हो सकता था, सब प्रयत्न किये। उस पर भी बाद में कभी चर्चा करूँगा नहीं तो विषयांतर हो जायेगा।

जब रावत जी के CM बनने की बात चल रही थी तो टिहरी के निर्दलीय विधायक का समर्थन भी चाहिये था, लेकिन कितना..। मैंने फिर नासमझी का एक Sentimental निर्णय लिया और रावत जी कहा कि आप मुख्यमंत्री बनिये, टिहरी के विधायक जी को कह दीजिये मैं यह Sacrifice भी करूँगा, वे ही वहाँ से चुनाव लड़ें।

जिस दिन टिहरी के विधायक को CM साहेब ने मन्त्री बनाया, सुबह मैंने उनसे किसी मसले पर बात की, उन्होंने मुझे नहीं बताया कि वे टिहरी के विधायक जी को मंत्री बना रहे हैं टिहरी के विधायक जी के मन्त्री बनने की जानकारी मुझे शपथ के बाद एक पत्रकार मित्र ने दी।

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