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युवा कवि हरीश कंडवाल की एक रचना… ये वादियां ये घाटियां गवाह हैं

हरीश कंडवाल
पौड़ी गढ़वाल, उत्तराखंड
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ये वादियां

ये वादियां ये घाटियां गवाह हैं
प्रकृति के अनूठे सृजन के लिए
ये सदियों से यथावत खड़ी हैं,
ईश्वर के शाश्वत प्रमाण के लिये।

ये नहीं बदली ये आज भी सुंदर है
ये स्थिर है, अविचल है, अडिग है
धरा की नैसर्गिक अविरल श्रृंगार है
यह नैनों के लिये आज भी दीदार है।

मानव की तृष्ना ने इनका दोहन किया
बढ़ते आविष्कारो ने इन्हें दहला दिया
मानव ने अपने स्वार्थ सिद्धि के लिए
शान्त वादियों घाटियों को अशान्त किया।

इन वादियों घाटियों का भी सौदा होने लगा
पानी, हवा, अन्न, यह सब दूषित होने लगा
जँहा कभी हवा की सरसराहट होती थी
वँहा कंक्रीट का भव्य महल बनने लगा।

इन वादियों और घाटियों में तपस्या नही
हनीमून के ट्रिप और प्रेम आलिंगन होने लगा
शान्त घाटियों में अब सोमरस पान होने लगा
यँहा इश्क के नाम पर प्रेम बदनाम होने लगा।

ना छेड़ो इन प्रकृति की अमूल्य धरोहर को
भूस्खलन, आपदा, अभी तो इशारे भर है
अपने स्वार्थों की लालसा को यँही विराम दो
इन शांत वादियों घाटियों को यथावत रहने दो।।

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