Mon. Dec 23rd, 2024

चलो चले गांव की ओर… नौवीं किश्त.. मैंने कह दिया, बोगट्या वोगट्या तो नहीं पर रोट कटेगा

नीरज नैथानी
रुड़की, उत्तराखंड


चलो चले गांव की ओर…. गतांक से आगे… नौवीं किश्त.. समापन से पूर्व की किश्त

भैजी कल तेरे घर की महफिल में भी बौत मज्जा आया पर, सच बताना हमारे आने के बाद भाभी जी ने क्लास तो नहीं ली नरू काका ने डायरेक्टर बोडा को छेड़ा। अमा यार किसकी घरवाली बोलेगि कि दारू पिओ.. गुलछर्रे उड़ाओ.. पर मैंने पैलेई बोल दिया था कि भै बंध बैठेंगे शाम को हल्ला मत करना।तकरार की आवाज तो आ रही थी मैंने सुना, हम पे नाराज तो नहीं हो रही थीं नरू काका भी सच उगलवाने को आतुर हो रहा था। ना ना तुम्हारे लिए कुछ नहीं कह रही थी बोडा ने टालने की गरज से कहा। कुछ तो बोल ही रही थी भैजी, नरू काका भी नशे की पिनक में अड़ गया। यार वो अक्सर मेरे द्वारा दोस्तों को दी जाने वाली दावत को फालतू की दरियादिली का आरोप लगाकर ताने सुनाती रहती है कि सारी दुनिया के लिए सबकुछ लुटाते रहते हो पर मेरे लिए आज तक क्या किया?

ये तो हर किसी की जनानी कहती है, भूरा ने ठहाका लगाकर माहौल को हलका किया। कहीं शादी विवाह में जाना हो तो कहेगी क्या पहनूं कुछ है ही नहीं पहनने के लिए। तब कहने का मन होता है कि बाजार चल तुझे साड़ी नहीं चश्मा दिला देता हूं ताकि देख सके कि अल्मारी में कितनी साड़ियां भरी पड़ी हैं परंतु फालतू में कौन उलझे इसलिए बहस टाल देता हूं बोडा नरू काका के उकसावे में आकर फट पड़ा। यार जनानी आफीसर की हो या बाबू की सारी दुनिया लाकर उसके कदमों में रख दो तब भी रूठने के सौ बहाने होते हैं उसके पास मन्ना काका ने भी अपनी पीड़ा व्यक्त की।

चलाएं एक-एक लवली पैग और मन्ना ने लोकतांत्रिक पद्धति से बैठकी में समर्थन चाहा। वेरी लिटिल चलेगा कल दिन में पूजा व हवन के बाद हमें निकलना भी है सारा सामान बिखरा है पैकिंग भी नहीं की डायरेक्टर बोडा ने कंडीशन बतायी। ओके जरा-जरा सा कहते हुए मन्ना काका ने भूरा को इशारा किया चल भई तूने ही ओपनिंग की थी अब फिनिशिंग टच भी तू ही देगा। भैजी, तो कल आपका जाना पक्का हो गया, नहीं तो रुकते एक-आध दिन नरू काका ने बोडा से नशीले अपनत्व से कहा। ना यार बौत दिन गैप हो गया औफिस से फिर आएंगे, अगले साल पूजा में डायरेक्टर बोडा ने आश्वस्त किया।

मन्ना काका ने बताया कि मुझे तो दशहरे नवरात्रों पर फिर जल्दी आना होगा। घरवाली ने देवी से मनौती मांगी थी, उचाणा भी निकाल रखा है। एक दिन देवता नचाना है वो तो बोगटया चढ़ाने को भी बोल रही थी, मैंने कह दिया बोगट्या वोगट्या तो नहीं पर रोट कटेगा। मंदिर में लगा देंगे मण्डाण, दास व जगरी से बात भी कर ली है। हां भई गांव की संजायती पूजा पाठ के अलावा भी अपने देवी देवताओं को मनाते रहा करो। उनके थान सुन्नपट् नहीं होना चाहिए। नहीं तो हम देखते हैं कि घर में पैसा भी ठीक ही आ रहा है, कमाई‌ भी ठीक ही है भगवान की दया से, किसी चीज की कमीं भी नहीं है पर परेशानियां दूर नहीं होती लगतीं। मन चल विचल हुआ रहता है, ऐसे में अपने देवी देवता ही‌ सहारा देते हैं बोडा ने मन की बात कही।

फर्क तो पड़ता ही है भैजी, मेरे घर में भी कुछ‌ समय से बौत परेशानी हो रखी थी। कभी एक बीमार तो कभी दूसरा। एक समस्या से जूझो तो दूसरी आ खड़ी होती। मैं दौड़ भाग करके परेशान हो गया। तब पंडित जी को जनम पत्री दिखाई, वो बोले कष्ट के ग्रह चल रहे हैं संकटा लगी है उपचार करना पड़ेगा। मैंने नौ बामण बुलाकर चण्डी पाठ कराया, जो भी थोड़ी बौत श्रृद्धा सामर्थ्य थी, उसके अनुसार दान दक्षिणा दी। तब से हालात कुछ ठीक हुए हैं, नरी काका ने आप बीती सुनायी।

अच्छा मुझे तो इजाजत दो वो खाना बनाकर तैयार बैठी होगी बोडा ने उठते हुए विदा मांगी। भैजी तू ही क्या‌ हम भी चलते हैं बौत हो गया, आनंद आ गया कहते हुए नरी काका उठने लगा तो सारे ही सभा विसर्जित करने के लिहाज से एक दूसरे को अभिवादन करने लगे। हांलाकि भूरा व दिन्ना का कोटा तो तब तक पूरा नहीं होता जब तक वो लतपत ना हो जाएं पर, औरों की देखा देखी शर्म लिहाज के मारे अनमने मन से दोनों ने कहा चलो तो जब सब कह‌ रहे हैं हो गया तो.. हो ही गया।

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