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“पागल फ़क़ीरा” की एक ग़ज़ल … मैंने घर वापसी का कभी ऐसा मंज़र नहीं देखा…

“पागल फ़क़ीरा”
भावनगर, गुजरात
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मैंने घर वापसी का कभी ऐसा मंज़र नहीं देखा,
दिल में गड़ा है जो वो यादों का खंडहर नहीं देखा।

हिजरत करने वालों के ऊपरी ज़ख़्म देखने वालों,
आपने कभी राहगीरों के घाव के अंदर नहीं देखा।

इतनी मुश्किल हालातों के बीच भी हिन्दुस्तान में,
कभी इन्सानियत की ज़मीन को बंजर नहीं देखा।

मजबूर है पर मग़रूर नहीं देखा मज़दूर को कभी,
ग़रीबी में भी उनकी आँखों में समन्दर नहीं देखा।

मुझे तो आश थी सिर्फ़ अपने ही एक वफ़ादार की,
“फ़क़ीरा” ने आस्तीन में छुपा वो खंज़र नहीं देखा।

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