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युवा कवि विनय अन्थवाल की भारतभूमि को समर्पित रचना.. विश्वगुरु था मेरा भारत पावन सुखमय वसुधा में..

विनय अन्थवाल
देहरादून, उत्तराखण्ड
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विश्व गुरु भारत
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विश्वगुरु था मेरा भारत
पावन सुखमय वसुधा में
ज्ञानालोक से आलोकित था
मेरा भारत वसुधा में।

ज्ञान यहाँ का आभूषण था
ज्ञान गंगा बहती थी।
भारत माता ही इस जग में
सबसे ऊपर रहती थी ।

दिव्यगुणों से सम्पन्न मानव,
भारत में ही रहते थे
सारे जग में केवल इसको,
देवभूमि भी कहते थे।

सबसे पहले ज्ञान का दीपक,
भारत ने जलाया था।
अन्धे जग को भारत ने ही,
ज्ञानमार्ग बताया था।

विश्वगुरु है भारत अब भी
मानव हम ही बदल गए
भारत भू में रह रहकर भी
हम खुद को ही अब भूल गए।

विशिष्ट मानव भारतवासी
हम जैसा कोई और नहीं
आर्षवंशज हैं हम सब ही
विश्वगुरु कोई और नहीं।

आज भी भारत चमक रहा है
सारे जग में निखर रहा है।
सद्ज्ञान का दीपक आज भी भारत
सारे जग में जला रहा है।

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