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जानिए क्या है शीतलाखेत मॉडल, जिसे उत्तराखण्ड में वनाग्नि से निपटने के लिए अपना रहे है,यह है विशेषताएं
News by – ध्यानी टाइम्स
उत्तराखण्ड में वनाग्नि से निपटने के लिए शीतलाखेत मॉडल को अपनाया जा रहा है। धीरे-धीरे सभी जिले इसे अपनाने की दिशा में आगे बढ़ रहे हैं। मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी ने उत्तराखण्ड में वनाग्नि पर प्रभावी नियंत्रण के लिए शीतलाखेत मॉडल को आदर्श मॉडल बताया है।
उन्होंने कहा कि वनों को बचाने में समुदाय किस प्रकार अपना रचनात्मक व सकारात्मक योगदान दे सकते हैं, शीतलाखेत मॉडल इसका उत्कृष्ट उदाहरण हैं। उन्होंने कहा कि राज्य के बेशकीमती वनों को अग्नि से बचाने के लिए स्थानीय समुदायों, ग्रामीणों और विशेषकर महिलाओं की सहभागिता जरूरी है।
उन्होंने कहा कि समुदाय ही सबसे पहले किसी भी आपदा का सामना करते हैं और यदि वे समय पर इसकी सूचना प्रशासन को दें तथा राहत और बचाव दलों के पहुंचने से पहले छोटे-छोटे प्रयास प्रारंभ कर दें तो काफी हद तक आपदाओं के खतरों को कम किया जा सकता है।
मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी ने गुरुवार को उत्तराखण्ड में वनाग्नि नियंत्रण को लेकर पीएमओ कार्यालय के निर्देश पर राष्ट्रीय आपदा प्रबंधन प्राधिकरण गृह मंत्रालय, भारत सरकार और उत्तराखण्ड राज्य आपदा प्रबंधन प्राधिकरण के संयुक्त तत्वावधान में आयोजित मॉक ड्रिल का जायजा लिया। यह मॉक ड्रिल राज्य में वनाग्नि के दृष्टिकोण से सबसे अधिक प्रभावित छह जनपदों, अल्मोड़ा, चम्पावत, पौड़ी, टिहरी, उत्तरकाशी और देहरादून के 16 स्थानों पर की गई। यह देश की पहली मॉक ड्रिल है जो वनाग्नि नियंत्रण में समुदायों की सहभागिता पर केन्द्रित है।
उन्होंने कहा कि हमारे राज्य का 71 प्रतिशत भूभाग घने वनों से अच्छादित है और यह जैव विविधता के लिए अत्यंत महत्वपूर्ण है। हर वर्ष हमें वनाग्नि की चुनौतियों से जूझना पड़ता है और इसके कारण न सिर्फ वन संपदा को नुकसान पहुंचता है, बल्कि वन्य जीवों के साथ पर्यावरण तथा स्थानीय समुदायों की आजीविका भी प्रभावित होती है।
उन्होंने कहा कि वनाग्नि से प्रभावी तरीके से निपटने में सभी विभागों के साथ ही स्थानीय समुदायों को फ्रंटफुट में आकर कार्य करना पड़ेगा। वनाग्नि हो या कोई अन्य आपदा, यह विषय एक विभाग का नहीं है बल्कि समूचे तंत्र का है और सभी को इसमें ओनरशिप लेनी होगी।
उन्होंने कहा कि युवक मंगल दल, महिला मंगल दल, एनसीसी और एनएसएस कैडेट्स, स्थानीय ग्रामीण और विशेषकर महिलाएं, आपदा मित्र, भारत स्काउट एंड गाइड, फायर वाचर्स, रेड क्रास, एनजीओ, पंचायत प्रतिनिधि, ग्राम प्रधान और विद्यार्थियों को भी जागरूक और प्रशिक्षित किया जाए।
शीतलाखेत मॉडल की विशेषताएं-
- हर वर्ष 01 अप्रैल को ओण दिवस मनाया जाता है, जिसके तहत महिलाओं द्वारा एक अप्रैल से पहले खेतों के मेड़ों में उगी कांटेदार झाड़ियों, खरपतवारों को नियंत्रित तरीके से जलाया जाता है।
- वनाग्नि संवेदनशील क्षेत्रों में फायर पट्टी का निर्माण कर नियंत्रित फुकान किया जाता है।
- बांज, काफल, उतीश आदि चौड़ी पत्ती प्रजाति के पेड़ों के कटान पर पाबंदी।
- वनाग्नि नियंत्रण के लिए सभी गांवों में महिला मंगल दलों का गठन।
- आग बुझाने में सहयोग करने वाले महिला मंगल दलों को किया जाता है सम्मानित।
- वनाग्नि नियंत्रण में वन विभाग का पूरा सहयोग करते हैं ग्रामीण।
- आग लगने पर महिलाओं, ग्रामीणों द्वारा पहले एक घंटे में वन विभाग के सहयोग या स्वयं ही आग को नियंत्रित करने के प्रयास आरम्भ कर दिए जाते हैं।
- व्हाट्सप्प समूह की माध्यम से वनाग्नि आरम्भ होने की सूचना का आदान प्रदान होता है।
- महिलाओं, युवाओं और वन कर्मियों के सहयोग से जंगल बचाओ-जीवन बचाओ अभियान संचालित।
- 30 से अधिक गांवों की महिलाओं, युवाओं, जन प्रतिनिधियों और वन कर्मियों के व्हाट्सएप समूह का