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राजनीति के वटवृक्ष….पूर्व मुख्यमंत्री हेमवती नंदन बहुगुणा की विरासत से इस बार कोई प्रत्याशी नहीं, लोकसभा का यह संभवतः पहला ऐसा चुनाव

News by- ध्यानी टाइम्स

स्वर्गीय हेमवती नंदन बहुगुणा राजनीति के उस वटवृक्ष की तरह थे, जिसकी शाखाएं गढ़वाल से लेकर उत्तर प्रदेश तक फैली थीं। लोकसभा का यह संभवतः पहला ऐसा चुनाव है, जिसमें बहुगुणा की विरासत को लेकर चलने वाला एक भी नेता समर में मौजूद नहीं है

प्रयागराज (इलाहाबाद) से बहुगुणा की सुपुत्री रीता बहुगुणा जोशी से जो उम्मीद बंधी थी, वह भी उनका टिकट कटने के साथ ही टूट गई।

वह 2019 में इलाहाबाद (प्रयागराज) लोस सीट से भाजपा के टिकट पर सांसद चुनी गई थी। 70 के दशक से 2019 तक ऐसे कम ही चुनाव रहे जब स्वर्गीय बहुगुणा की राजनीतिक विरासत से जुड़ा कोई न कोई सदस्य या रिश्तेदार संसदीय चुनाव के मैदान में नजर नहीं आया। इलाहाबाद से संसदीय राजनीति की पारी शुरू करने वाले बहुगुणा पहली बार 1971 में लोकसभा के लिए चुने गए थे।

1977 में उन्होंने कांग्रेस फॉर डेमोक्रेसी के सदस्य के तौर पर लखनऊ लोकसभा से चुनाव जीता। यूपी की सियासत के दिग्गज नेता ने 1980 में गढ़वाल का रुख किया। बहुगुणा गढ़वाल लोकसभा सीट से चुने गए। इंदिरा गांधी से रिश्तों में कड़वाहट के बाद उन्होंने 1982 में गढ़वाल सीट से लोस का उपचुनाव जीता। यहां से फिर उन्होंने सीट बदली और इलाहाबाद सीट पर 1984 के लोस चुनाव में फिल्म अभिनेता अमिताभ बच्चन से हार गए।

कुल मिलाकर 70 के दशक से 80 के पूर्वार्द्ध तक संसदीय चुनावों की सियासत में बहुगुणा अपनी धमाकेदार उपस्थिति दर्ज कराते रहे। बहुगुणा के निधन के बाद उनकी राजनीतिक विरासत को आगे बढ़ाने के लिए उनके सुपुत्र विजय बहुगुणा, शेखर बहुगुणा और बेटी रीता बहुगुणा जोशी ने अपनी राजनीतिक सक्रियता को बढ़ाया। इनमें से रीता बहुगुणा और विजय बहुगुणा को आगे चलकर लोकसभा में प्रतिनिधित्व करने का अवसर प्राप्त हुआ।

हालांकि, 90 के दशक के पूर्वार्द्ध तक बहुगुणा परिवार का कोई सदस्य लोकसभा के चुनाव में नहीं उतरा। अलबत्ता गढ़वाल सीट पर पांच बार सांसद चुने गए मेजर जनरल बीसी खंडूड़ी को बहुगुणा की विरासत से जोड़कर भी देखा गया। इसकी वजह जनरल खंडूड़ी का बहुगुणा का भांजा होना माना जाता है। हालांकि, 1998 के लोस चुनाव में खंडूड़ी को ममेरे भाई के खिलाफ चुनाव लड़ना पड़ा था।

साकेत बहुगुणा को अपना उत्तराधिकारी बनाने का निर्णय लिया
इस चुनाव में विजय बहुगुणा कांग्रेस के टिकट पर उतरे और तीसरे स्थान पर रहे। वह कांग्रेस के टिकट पर 1999 का लोकसभा चुनाव भी लड़े और भाजपा के मानवेंद्र शाह से चुनाव हार गए। इसके बाद उन्होंने 2004 में टिहरी लोकसभा से फिर चुनाव लड़ा और एक बार फिर उन्हें पराजय का सामना करना पड़ा।

2009 के लोकसभा चुनाव में विजय बहुगुणा को जीत नसीब हुई। 2012 में उत्तराखंड का मुख्यमंत्री बनने के बाद बहुगुणा परिवार से लोस चुनाव में उतरने का सिलसिला नहीं टूटा। खाली हुई टिहरी लोकसभा सीट पर बहुगुणा ने अपने सुपुत्र साकेत बहुगुणा को अपना उत्तराधिकारी बनाने का निर्णय लिया, लेकिन साकेत उपचुनाव हार गए। 2014 के लोकसभा चुनाव में एक बार फिर कांग्रेस के टिकट पर साकेत को चुनाव लड़ने का अवसर मिला। उन्हें पराजय का सामना करना पड़ा।

टिकट को लेकर जिन नामों की थीं चर्चाएं

2019 के लोकसभा चुनाव में उत्तराखंड से तो नहीं, लेकिन उत्तरप्रदेश की इलाहाबाद सीट से स्वर्गीय बहुगुणा की सुपुत्री रीता बहुगुणा जोशी ने चुनाव लड़ा और जीतीं। हालांकि, इस बार 2024 के लोकसभा चुनाव में उत्तराखंड की नैनीताल-ऊधम सिंह नगर सीट से टिकट को लेकर जिन नामों की चर्चाएं थीं, उनमें एक नाम पूर्व सीएम विजय बहुगुणा के बेटे सौरभ बहुगुणा भी लिया जा रहा था।

भाजपा ने अजय भट्ट का टिकट तय करके सौरभ से जुड़ी उम्मीदें तो खत्म किया। इस बीच यह संभावना जताई गई कि इलाहाबाद सीट से रीता बहुगुणा जोशी का टिकट तो पक्का हो ही जाएगा। यानी, संसदीय चुनाव में बहुगुणा की विरासत चलती रहेगी, लेकिन इलाहबाद सीट से रीता बहुगुणा का टिकट कटने के साथ ही यह उम्मीद भी खत्म हो गई। भाजपा ने वहां नीरज त्रिपाठी पर दांव लगाया है।

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