भक्ति योग के द्वारा ही यह मन स्वच्छ और स्थिर हो सकता है, जिसमें हम आत्म दर्शन कर सकते हैं -: आचार्य शिव प्रसाद ममगांई
News by – ध्यानी टाइम्स
देहरादून, (19 फरवरी) ईश्वर एक जादूगर है। माया ही वह जादू है, जिसमें हम सब विमोहित हो रहे हैं। ध्यान से देख उसकी जादूगरी को आज जीव माया के विभूषित होकर ही दुख भोग रहा है क्योंकि वह ईश्वर की भक्ति नहीं करता।
माया की भक्ति करके वह विभक्त हो गया है। वह माया को अपनी मान बैठा है जबकि माया तो भगवान की है।
उक्त विचार ज्योतिष्पीठ व्यास आचार्य शिव प्रसाद ममगांई ने मेजर बिभूति शंकर ढोन्ढियाल की पुण्य तिथि पर आयोजित श्रीमद्भागवत कथा के पांचवें दिन डंगवाल मार्ग नेशविला रोड देहरादून में व्यक्त करते हुए कहा। उन्होंने कहा कि यह मन एक सरोवर है संसार की वासना का व दुर्गुणों के कारण इसका जल अस्वच्छ और चंचल हो गया है भक्ति योग के द्वारा ही यह मन स्वच्छ और स्थिर हो सकता है, जिसमें हम आत्म दर्शन कर सकते हैं। मात्र दृष्टा बनकर देखना ही सार है। ये माया के संस्कार तुम फिर आत्मसात कर लोगे फिर यह बड़े सौभाग्य से मिला मानुष जन्म यों ही व्यर्थ चला जायेगा। फिर वही जन्म-मृत्यु का चक्र चलता ही रहेगा।तुम कभी उभर नहीं पाओगे।
इस अवसर पर विशेष रूप से रजनी कौल, मोहन कृष्ण कौल, जय दत्त बहुगुणा, सरोज ढौन्ढियाल, वैष्णवी, कैप्टन निकिता, जगदीश, हरिश्चंद्र, गिरीशचंद्र, सतीशचन्द्र, कर्नल विकास नौटियाल, राजेश पोखरियाल, सीमा, मुकेश, राजपुर की पार्षद उर्मिला ढौन्ढियाल,
मीना सेमवाल, सरस्वती रतूड़ी, मंजू बडोनी, निरामला रावत, कमलेश रावत, आचार्य दामोदर सेमवाल दिवाकर, आचार्य संदीप बहुगुणा, आचार्य हिमांशु मैठानी, आचार्य अंकित, विनोद चमोली, सुनीता चड्ढा, वीना चड्ढा और भारी संख्या भक्तगण में उपस्थित थे।