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कर्म छोड़ना वैराग्य नही है आशक्ति छोड़ना वैराग्य है -: आचार्य शिव प्रसाद ममगाई

News by- ध्यानी टाइम्स

देहरादून – सच्चा सुख तो आत्मज्ञान के बिना नही मिल सकता। उसके लिए इन वृतियों का निरोध आवश्यक है। ये निरंतर अभ्यास और वैराग्य से ही सम्भव है। भगवान श्रीकृष्ण ने गीता में कहा है कि निःसंदेह मन चंचल और कठिनता से वश में होने वाला है परंतु हे कौन्तेय अभ्यास और वैराग्य से यह वश में होता है कर्म छोड़ना वैराग्य नही है आशक्ति छोड़ना वैराग्य है।

उक्त विचार आचार्य शिव प्रसाद ममगाई ने डंगवाल मार्ग नेशविला रोड में मेजर विभूति शंकर ढौंडियाल की पुण्य स्मृति में आयोजित श्रीमद्भागवत कथा के दूसरे दिन की कथा में कहे। उन्होंने कहा कि चित की स्थिरता के लिए बार-बार जो प्रयत्न करता है वही सफल रहता है।

मन बड़ा चंचल है यह एक क्षण भी शांत नही रहता। विचारों का प्रवाह ही मन की चंचलता का कारण है। यह प्रवाह में भी चलता रहता है। स्वप्न भी इसी प्रवाह से आते हैं। यह मन सर्वत्र भागता है, इसे किसी एक ध्येय की ओर स्थिर करने की चेष्टा बारम्बार करना अभ्यास है। ध्यान करने से मन किसी एक शक्ति पर केन्द्रित होता है। इससे मन की शक्ति कई गुना बढ़ जाती है।

इस अवसर पर सरोज ढौंडियाल, जगदीश प्रसाद वैष्णवी, हरीश चंद्र, सतीश चन्द्र, गिरीश चन्द्र, कर्नल विकास नौटियाल, राजेश पोखरियाल, मुकेश पोखरियाल, विवेकानंद खंडूड़ी, संतोष गैरोला, दमयंती देवी, बसन्ती देवी, इंदु देवी, आचार्य ऋषि प्रसाद सती, सीमा पोखरियाल, सोनिया कुकरेती, गीता बडोनी, रेखा बहुगुणा, लक्ष्मी बहुगुणा, नंदा तिवारी, आचार्य दामोदर सेमवाल, आचार्य दिवाकर भट्ट, आचार्य संदीप बहुगुणा, आचार्य हिमांशु मैठाणी मौजूद रहे।

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