‘कृष्ण और हनुमान थे दुनिया के सबसे बड़े डिप्लोमेट’ विदेश मंत्री एस जयशंकर ने बताई महाभारत की दिलचस्प बात
News by- ध्यानी टाइम्स रवि ध्यानी
विदेश मंत्री एस. जयशंकर ने अपनी किताब ‘द इंडिया वे’ के मराठी अनुवाद ‘भारत मार्ग’ के विमोचन के मौके पर कहा कि दुनिया के सबसे बड़े डिप्लोमेट एक तो श्री कृष्ण थे और दूसरे हनुमान जी थे
उन्होंने कहा, ‘बहुत सीरियस उत्तर दे रहा हूं मैं आपको कि अगर आप उनको कूटनीति की परिप्रेक्ष्य से देखें तो पाएंगे कि वो किस स्थिति में थे और उन्हें कौन सा मिशन दिया गया था, किस तरीके से उन्होंने हैंडल किया था. हनुमान जी अपने इंटेलिजेंस के साथ मिशन के आगे भी बढ़ गए थे. सीता से भी मिले थे, पूरी लंका की खबर ली और फिर लंका को जला भी दिया. आप देखेंगे कि वो कैसे डिप्लोमेटिक थे. वो मल्टीपर्पज डिप्लोमेट थे.’
उन्होंने महाभारत के किस्सों को भी संदर्भों के तौर पर इस्तेमाल किया और कहा, ‘अगर आज मैं आपको बताउं कि अंतरराष्ट्रीय संबंधों के मामले में दुनिया के 10 सबसे बेहतर स्ट्रेटेजिक कॉन्सेप्ट कौन से हैं. उन्होंने महाभारत का उदाहरण देते हुए बताया कि आज वैश्विक दुनिया है, सब एक दूसरे पर निर्भर हैं. उस समय भी ऐसा ही था. अर्जुन को इस बात की दिक्कत थी कि वो अपनों से ही कैसे युद्ध करें. कई बार हम ये कहते हैं कि पाकिस्तान ने ये किया वो किया… चलो हम स्ट्रेटेजिक पेशेंस दिखाते हैं. महाभारत में जिस तरह से कृष्ण ने शिशुपाल को हैंडल किया, वो स्ट्रेटेजिक पेशेंस का सबसे अच्छा उदाहरण है. 100 बार उन्होंने माफ किया और उसके बाद उन्होंने क्या किया ये सबको पता है.’
एस. जयशंकर ने कहा, ‘आजकल देशों के बीच मर्यादा की बात होती है. महाभारत की कहानी क्या है, उसमें जो नियमों का उल्लंघन करते हैं उन्हें आखिरी समय में खुद नियम याद आ जाते हैं, फिर चाहे वो कर्ण हों या फिर दूर्योधन. पूरी जिंदगी नियमों की धज्जियां उड़ाने वाले कहने लगते हैं कि ये नहीं करो ये नियमों के मुताबिक नहीं है.’
उन्होंने कहा, ‘कहा जाता है कि हमसे बड़े देश हैं, लेकिन ये याद रखने योग्य बात है कि पांडव 5 थे और कौरव 100. पांडवों की सेना भी छोटी थी लेकिन सोच बड़ी थी. अनुशासन ज्यादा था, क्रिएटिविटी ज्यादा थी और श्री कृष्ण उनके साथ थे. कभी कभी हम प्रतिष्ठा मूल्यों (रेपोटेशन कॉस्ट) की बात करते हैं, तो पांडवों की रेपोटेशन कौरवों के मुकाबले काफी ज्यादा थी. इसलिए रेपोटेशन का बहुत बड़ा फर्क पड़ता है. कभी-कभी बड़े फायदे के लिए टैक्टिकल एडजस्टमेंट करने पड़ते हैं. इसके भी कई उदाहरण हैं, जैसे युधिष्ठिर ने अश्वतथामा के बारे में कहा, टेक्निकली आप कहेंगे कि ये गलत है लेकिन उन्होंने एक कारण के लिए ये किया.’