नैनीताल हाईकोर्ट ने फैसला सुनाया कि राजकीय विश्वविद्यालयों में कार्यरत शिक्षकों की संविदा सेवा को पदोन्नति में नहीं गिना जाएगा। असिस्टेंट प्रोफेसर बिपिन भट्ट की याचिका खारिज कर दी गई। कोर्ट ने यूजीसी के नियमों का हवाला दिया। इसके अतिरिक्त दो प्रोफेसरों पर 25-25 हजार रुपये का जुर्माना भी लगाया गया क्योंकि वे प्रोफेसर पदनाम को लेकर याचिका दायर किए थे जिसे कोर्ट ने खारिज कर दिया।
हाईकोर्ट ने स्पष्ट किया कि यदि याचिकाकर्ता यूजीसी विनियमों के अधीन सभी शर्तों को पूरा नहीं करता है तो उनकी संविदा के रूप में पूर्व में की गई सेवा को पदोन्नति के लिए जोड़ा नहीं जा सकता। यूजीसी रेगुलेशंस, 2018 में कैरियर एडवांसमेंट स्कीम को लेकर इस संबंध में दिशा-निर्देश दिए गए हैं।
इस संबंध में विभाग ने हाईकोर्ट में पक्ष रखते हुए कहा कि असिस्टेंट प्रोफेसर की पदोन्नति यूजीसी के नियमों के अंतर्गत होती हैं। पूर्व में संविदा शिक्षक के रूप में कार्यरत बिपिन भट्ट पदोन्नति के संबंध में यूजीसी की शर्तों को पूरा नहीं करते हैं। दोनों पक्षों को सुनने के बाद हाईकोर्ट ने इस याचिका को खारिज करते हुए राज्य सरकार के पक्ष में निर्णय सुनाया।
उधर, हाईकोर्ट की खंडपीठ ने प्रोफेसर पदनाम 11 मई, 2019 के स्थान पर वर्ष 2015 से देने के संबंध में दायर याचिका पर कड़ा रुख अपनाते हुए दो प्रोफेसर हरि ओम प्रकाश सिंह और विजय प्रकाश श्रीवास्तव पर 25-25 हजार रुपये जुर्माना लगाया। प्रो हरि ओम प्रकाश सिंह बागेश्वर जिले के राजकीय महाविद्यालय दुगनाकुरी में प्राचार्य पद पर कार्यरत हैं।
तत्कालीन चयन समिति ने उन्हें प्रोफेसर पद के लिए पात्र नहीं पाया। इस कारण वर्ष 2018 में उनका प्रोफेसर पद के लिए चयन नहीं हो पाया। शासन ने यह भी बताया कि यूजीसी नियमों के अंतर्गत पदोन्नति में असफल होने पर एक वर्ष बाद ही पदोन्नति की जा सकती है।
इस नियम के अंतर्गत ही उन्हें वर्ष 2019 में प्रोफेसर पदनाम दिया गया। 14 मई, 2025 को हाईकोर्ट ने निर्णय सुनाते हुए याचिकाओं को खारिज करने के साथ ही दोनों प्रोफेसर पर जुर्माना भी लगाया।